शिऺक ददवस बायत बूशभ ऩय अनेक ववबूततमों ने अऩने ऻान से हभ सबी का भागग दिगन ककमा है । उन्ही भें से एक भहान

ववबतू त शिऺाववद्, दािगतनक, भहानवक्ता एवॊ आस्थावान दहन्द ु ववचायक डॉ. सवगऩल्रवी याधाकृष्णन जी ने शिऺा के ऺेत्र भें अभल् ू म मोगदान ददमा है । उनकी भान्मता थी कक मदद सही तयीके से शिऺा दी जाये तो सभाज की अनेक फुयाईमों को शभटामा जा सकता है ।

ऐसी भहान ववबतू त का जन्भददन शिऺक ददवस के रूऩ भें भनाना हभ सबी के शरमे गौयव की फात है । डॉ. सवगऩल्री याधाकृष्णन जी के व्मक्क्तत्व का ही असय था कक 1952 भें आऩके शरमे सॊववधान के अॊतगगत उऩयाष्रऩतत का ऩद सक्ृ जत ककमा गमा। स्वतॊत्र बायत के ऩहरे उऩयाष्रऩतत जफ 1962 भें याष्रऩतत फने तफ कुछ शिष्मों ने एवॊ प्रिॊसकों ने आऩसे तनवेदन ककमा कक वे उनका जनभददन शिऺक ददवस के रूऩ भें भनाना चाहते

हैं। तफ डॉ. सवगऩल्री याधाकृष्णन जी ने कहा कक भेये जन्भददवस को शिऺक ददवस के रूऩ भें भनाने से भैं अऩने आऩ को गौयवाक्न्वत भहसस ू करूॊगा। तबी से 5 शसतॊफय को शिऺक ददवस के रूऩ भें भनामा जाने रगा।

डॉ. सवगऩल्री याधाकृष्णन जी ऻान के सागय थे। उनकी हाक्जय जवाफी का एक ककस्सा आऩसे Share कय यहे है ्—

एक फाय एक प्रततबोज के अवसय ऩय अॊग्रेजों की तायीप कयते हुए एक अॊग्रेज ने कहा – ―ईश्वय हभ अॊग्रेजों को फहुत प्माय कयता है । उसने हभाया तनभागण फङे मत्न औय स्नेह से ककमा है । इसी नाते हभ सबी इतने गोये औय

सॊद ु य हैं।― उस सबा भें डॉ. सवगऩल्री याधाकृष्णन जी बी उऩक्स्थत थे। उन्हे मे फात अच्छी नही रगी अत् उन्होने उऩक्स्थत शभत्रों को सॊफोधधत कयते हुए एक भनगढॊ त ककस्सा सुनामा—

―शभत्रों, एक फाय ईश्वय को योटी फनाने का भन हुआ उन्होने जो ऩहरी योटी फनाई, वह जया कभ शसकी। ऩरयणाभस्वरूऩ अॊग्रेजों का जन्भ हुआ। दस ू यी योटी कच्ची न यह जाए, इस नाते बगवान ने उसे ज्मादा दे य तक सेंका औय वह जर गई। इससे तनग्रो रोग ऩैदा हुए। भगय इस फाय बगवान जया चौकन्ने हो गमे। वह ठीक से योटी ऩकाने रगे। इस फाय जो योटी फनी वो न ज्मादा ऩकी थी न ज्मादा कच्ची। ठीक शसकी थी औय ऩरयणाभ स्वरूऩ हभ बायततमों का जन्भ हुआ।― मे ककस्सा सुनकय उस अग्रेज का शसय िभग से झुक गमा औय फाकी रोगों का हॉसते हॉसते फुया हार हो गमा। शभत्रों, ऐसे सॊस्कारयत एवॊ शिष्ट भाकूर जवाफ से ककसी को आहत ककमे बफना डॉ. सवगऩल्री याधाकृष्णन जी ने बायतीमों को श्रेष्ठ फना ददमा। डॉ. सवगऩल्री याधाकृष्णन जी का भानना था कक व्मक्क्त तनभागण एवॊ चरयत्र

तनभागण भें शिऺा का वविेष मोगदान है । वैक्श्वक िाक्न्त, वैक्श्वक सभवृ ि एवॊ वैक्श्वक सौहादग भें शिऺा का भहत्व अततवविेष है । उच्चकोटी के शिऺाववद् डॉ. सवगऩल्री याधाकृष्णन जी को बायत के प्रथभ याष्रऩतत भहाभहीभ डॉ. याजेन्र प्रसाद ने बायतयत्न से स्भातनत ककमा।

भहाभहीभ याष्रऩतत डॉ. सवगऩल्री याधाकृष्णन जी के ववचायों को ध्मान भें यखते हुए, शभत्रों भेया मे भानना है कक शिऺक ददवस के ऩुतनत अवसय ऩय हभ सफ मे प्रण कयें कक शिऺा की ज्मोतत को ईभानदायी से अऩने जीवन भें आत्भसात कयें गे क्मोंकक शिऺा ककसी भें बेद नही कयती, जो इसके भहत्व को सभझ जाता है वो अऩने बववष्म को सुनहया फना रेता है । स्सत शिऺकों को हभ तन्न िब्दों से नभन कयते हैं —

ऻानी के भख ु से झये , सदा ऻान की फात। हय एक ऩाॊखुङी पूर, खुिफु की सौगात।। जमदहन्द अतनता िभाग---- Credit

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