ेमचंद नैरा य
बा
इनम
ज आदमी अपनी लड़ कयां ह
ी से इस लए नाराज रहते ह क उसके
य होती ह, लड़के
य नह ं होते। जानते ह क
ी को दोष नह ं है , या है तो उतना ह िजतना मेरा, फर भी जब
दे खए
ी से
ठे रहते ह, उसे अभा गनी कहते ह और सदै व उसका दल
दुखाया करते ह।
न पमा उ ह अभा गनी ि
य म थी और घमंडीलाल
पाठ उ ह ं अ याचार पु ष म। न पमा के तीन बे टयां लगातार हु ई थीं और वह सारे घर क
नगाह से गर गयी थी। सास-ससु र क अ स नता
क तो उसे वशेष चंता न थी, वह पु राने जमाने के लोग थे, जब लड़ कयां गरदन का बोझ और पू वज म का पाप समझी जाती थीं। हां, उसे दु:ख अपने प तदे व क अ स नता का था जो पढ़े - लखे आदमी होकर भी उसे जल -कट सु नाते रहते थे।
यार करना तो दूर रहा, न पमा से सीधे मु ंह
बात न करते, कई-कई दन तक घर ह म न आते और आते तो कु छ इस तरह खंचे-तने हु ए रहते क न पमा थर-थर कांपती रहती थी, कह ं गरज न उठ। घर म धन का अभाव न था; पर न पमा को कभी यह साहस न होता था
क
कसी सामा य व तु क
इ छा भी
कट कर सके। वह
समझती थी, म यथाथ म अभा गनी हू ं, नह ं तो भगवान ् मेर कोख म लड़ कयां ह रचते। प त क एक मृदु मु कान के लए, एक मीठ बात के लए उसका को
दय तड़प कर रह जाता था। यहां तक क वह अपनी लड़ कय
यार करते हु ए सकुचाती थी क लोग कहगे, पीतल क नथ पर इतना
गु मान करती है । जब
पाठ जी के घर म आने का समय होता तो कसी-
न- कसी बहाने से वह लड़ कय को उनक आंख से दूर कर दे ती थी। सबसे बड़ी वपि त यह थी क
पाठ जी ने धमक द थी क अब क क या हु ई
तो घर छोड़कर नकल जाऊंगा, इस नरक म को यह चंता और भी खाये जाती थी।
ण-भर न ठह ं गा। न पमा
वह मंगल का कतने
त रखती थी, र ववार, नजला एकादसी और न जाने
त करती थी।
नान-पू जा तो
अनु ठान से मनोकामना न पू र
न य का
होती थी।
नयम था; पर
न य अवहे लना,
कसी
तर कार,
उपे ा, अपमान सहते-सहते उसका च त संसार से वर त होता जाता था। जहां कान एक मीठ बात के लए, आंख एक
ेम- ि ट के लए,
दय एक
आ लंगन के लए तरस कर रह जाये, घर म अपनी कोई बात न पू छे, वहां जीवन से
य न अ च हो जाय?
एक दन घोर नराशा क दशा म उसने अपनी बड़ी भावज को एक प
लखा। एक-एक अ र से अस य वेदना टपक रह थी। भावज ने उ तर
दया—तु हारे भैया ज द तु ह वदा कराने जायगे। यहां आजकल एक स चे महा मा आये हु ए ह िजनका आश वाद कभी न फल नह ं जाता। यहां कई संतानह न ि
यां उनक आश वाद से पु वती हो गयीं। पू ण आशा है
क
तु ह भी उनका आश वाद क याणकार होगा। न पमा ने यह प
प त को दखाया।
पाठ जी उदासीन भाव से
बोले—सृि ट-रचना महा माओं के हाथ का काम नह ं, ई वर का काम है । न पमा—हां, ले कन महा माओं म भी तो कुछ स
होती है ।
घमंडीलाल—हां होती है , पर ऐसे महा माओं के दशन दुलभ ह। न पमा—म तो इस महा मा के दशन क ं गी। घमंडीलाल—चल जाना। न पमा—जब बां झन के लड़के हु ए तो म
या उनसे भी गयी-गु जर
हू ं । घमंडीलाल—कह तो दया भाई चल जाना। यह करके भी दे ख लो। मु झे तो ऐसा मालू म होता है, पु
का मु ख दे खना हमारे भा य म ह नह ं
है ।
क
2 ई
दन बाद
न पमा अपने भाई के साथ मैके गयी। तीन
पु यां भी साथ थीं। भाभी ने उ ह
ेम से गले लगाकर कहा,
तु हारे घर के आदमी बड़े नदयी ह। ऐसी गु लाब –फूल क -सी लड़ कयां
पाकर भी तकद र को रोते ह। ये तु ह भार ह तो मु झे दे दो। जब ननद और भावज भोजन करके लेट ं तो न पमा ने पू छा—वह महा मा कहां रहते ह? 2
भावज—ऐसी ज द
या है , बता दूं गी।
न पमा—है नगीच ह न? भावज—बहु त नगीच। जब कहोगी, उ ह बु ला दूं गी। न पमा—तो
या तु म लोग पर बहु त
स न ह?
भावज—दोन व त यह ं भोजन करते ह। यह ं रहते ह। न पमा—जब घर ह म वै य तो म रये
य ? आज मु झे उनके दशन
करा दे ना। भावज—भट
या दोगी?
न पमा—म कस लायक हू ं? भावज—अपनी सबसे छोट लड़क दे दे ना। न पमा—चलो, गाल दे ती हो। भावज—अ छा यह न सह , एक बार उ ह
ेमा लंगन करने दे ना।
न पमा—चलो, गाल दे ती हो। भावज—अ छा यह न सह , एक बार उ ह
ेमा लंगन करने दे ना।
न पमा—भाभी, मु झसे ऐसी हं सी करोगी तो म चल आऊंगी। भावज—वह महा मा बड़े र सया ह। न पमा—तो चू हे म जायं। कोई दु ट होगा। भावज—उनका आश वाद तो इसी शत पर मलेगा। वह और कोई भट वीकार ह नह ं करते। न पमा—तु म तो य बात कर रह हो मानो उनक भावज—हां, वह यह सब वषय मेरे ह
त न ध हो।
वारा तय कया करते ह। म
भट लेती हू ं । म ह आश वाद दे ती हू, ं म ह उनके हताथ भोजन कर लेती हू ं । न पमा—तो यह कहो
क तु मने मु झे बु लाने के
लए यह ह ला
नकाला है । भावज—नह ,ं उनके साथ ह तु ह कुछ ऐसे गु र दूं गी िजससे तु म अपने घर आराम से रहा। इसके बाद दोन स खय म कानाफूसी होने लगी। जब भावज चु प हु ई
तो न पमा बोल —और जो कह ं फर भावज—तो
या ह हु ई तो?
या? कु छ दन तो शां त और सु ख से जीवन कटे गा। यह
दन तो कोई लौटा न लेगा। पु
हु आ तो कहना ह 3
या, पु ी हु ई तो फर
कोई नयी यु ि त नकाल जायेगी। तु हारे घर के जैसे अ ल के दु मन के साथ ऐसी ह चाल चलने से गु जारा है । न पमा—मु झे तो संकोच मालू म होता है । भावज— पाठ जी को दो-चार दन म प
लख दे ना क महा मा जी
के दशन हु ए और उ ह ने मु झे वरदान दया है । ई वर ने चाहा तो उसी दन से तु हार मान- त ठा होने लगी। घमंडी दौड़े हु ए आयगे और त हारे ऊपर ाण नछावर करगे। कम-से-कम साल भर तो चैन क वंशी बजाना। इसके बाद दे खी जायेगी। न पमा—प त से कपट क ं तो पाप न लगेगा? भावज—ऐसे
वा थय से कपट करना पु य है । 3
ती
न चार मह ने के बाद न पमा अपने घर आयी। घमंडीलाल उसे वदा कराने गये थे। सलहज ने महा मा जी का रं ग और
भी चोखा कर दया। बोल —ऐसा तो कसी को दे खा नह ं क इस महा मा जी ने वरदान दया हो और वह पू रा न हो गया हो। हां, िजसका भा य फूट जाये उसे कोई घमंडीलाल इन बात
पर
या कर सकता है । य
तो वरदान और आश वाद क उपे ा ह करते रहे ,
व वास करना आजकल संकोचजनक मालू म होता ह; पर
उनके दल पर असर ज र हु आ। न पमा क खा तरदा रयां होनी शु सबके
दल म नयी-नयी आशाएं
हु । जब वह गभवती हु ई तो
हलोर लेने लगी। सास जो उठते गाल
और बैठते यं य से बात करती थीं अब उसे पान क तरह फेरती—बेट , तु म रहने दो, म ह रसोई बना लू ंगी, तु हारा सर दुखने लगेगा। कभी न पमा कलसे का पानी या चारपाई उठाने लगती तो सास दौड़ती—बहू ,रहने दो, म आती हू ं, तु म कोई भार चीज मत उठाया करा। लड़ कय क बात और होती है , उन पर कसी बात का असर नह ं होता, लड़के तो गभ ह म मान करने लगते ह। अब न पमा के लए दूध का उठौना कया गया, िजससे बालक पु ट और गोरा हो। घमंडी व
ाभू षण पर उता
हो गये। हर मह ने एक-न-
एक नयी चीज लाते। न पमा का जीवन इतना सु खमय कभी न था। उस समय भी नह ं जब नवेल वधू थी। 4
मह ने गु जरने लगे। न पमा को अनु भू त ल ण से व दत होने लगा क यह क या ह है ; पर वह इस भेद को गु त रखती थी। सोचती, सावन क धू प है, इसका
या भरोसा िजतनी चीज धू प म सु खानी हो सु खा लो,
फर तो घटा छायेगी ह । बात-बात पर बगड़ती। वह कभी इतनी मानशीला न थी। पर घर म कोई चू ं तक न करता क कह ं बहू का दल न दुखे , नह ं बालक को क ट होगा। कभी-कभी
न पमा केवल घरवाल को जलाने के
लए अनु ठान करती, उसे उ ह जलाने म मजा आता था। वह सोचती, तु म वा थय को िजतना जलाऊं उतना अ छा! तु म मेरा आदर इस लए करते हो न क म ब च जनू ंगी जो तु हारे कुल का नाम चलायेगा। म कु छ नह ं हू ं, बालक ह सब-कुछ है । मेरा अपना कोई मह व नह ,ं जो कु छ है वह बालक के नाते। यह मेरे प त ह! पहले इ ह मु झसे संसार-लोलु प न हु ए थे। अब इनका
कतना
ेम केवल
ेम था, तब इतने
वाथ का
वांग है । म भी
पशु हू ं िजसे दूध के लए चारा-पानी दया जाता है । खैर, यह सह , इस व त तो तु म मेरे काबू म आये हो! िजतने गहने बन सक बनवा लू,ं इ ह तो छ न न लोगे। इस तरह दस मह ने पू रे हो गये। न पमा क दोन ननद ससु राल से बु लायी गयीं। ब चे के लए पहले ह सोने के गहने बनवा लये गये, दूध के लए एक सु दर दुधार गाय मोल ले ल गयी, घमंडीलाल उसे हवा खलाने को एक छोट -सी सेजगाड़ी लाये। िजस दन न पमा को लगी,
सव-वेदना होने
वार पर पं डत जी मु हू त दे खने के लए बु लाये गये। एक मीर शकार
बंदक ू छोड़ने को बु लाया गया, गायन मंगल-गान के लए बटोर ल गयीं। घर से तल- तल कर खबर मंगायी जाती थी,
या हु आ? लेडी डॉ टर भी बु लायी
गयीं। बाजे वाले हु म के इंतजार म बैठे थे। पामर भी अपनी सारं गी लये ‘ज चा मान करे नंदलाल स ’ क तान सु नाने को तैयार बैठा था। सार तैया रयां; सार आशाएं, सारा उ साह समारोह एक ह श द पर अवलि ब था।
य - य दे र होती थी लोग म उ सु कता बढ़ती जाती थी। घमंडीलाल
अपने मनोभाव को छपाने के लए एक समाचार –प
दे ख रहे थे, मानो
उ ह लड़का या लड़क दोन ह बराबर ह। मगर उनके बू ढ़े पता जी इतने सावधान न थे। उनक पीछ खल जाती थीं, हं स-हं स कर सबसे बात कर रहे थे और पैस क एक थैल को बार-बार उछालते थे। मीर शकार ने कहा—मा लक से अबक पगड़ी दुप ा लू ंगा। 5
पताजी ने खलकर कहा—अबे कतनी पग ड़यां लेगा? इतनी बेभाव क दूं गा क सर के बाल गंजे हो जायगे। पामर बोला—सरकार अब क कु छ जी वका लू ं। पताजी
खलकर बोले—अबे
कतनी खायेगा;
खला- खला कर पेट
फाड़ दूं गा। सहसा महर घर म से नकल । कुछ घबरायी-सी थी। वह अभी कु छ बोलने भी न पायी थी क मीर शकार ने ब दूक फैर कर ह तो द । ब दूक छूटनी थी क रोशन चौक क तान भी छड़ गयी, पामर भी कमर कसकर नाचने को खड़ा हो गया। महर —अरे तु म सब के सब भंग खा गये हो गया? मीर शकार— या हु आ? महर —हु आ
या लड़क ह तो फर हु ई है?
पता जी—लड़क हु ई है? यह कहते-कहते वह कमर थामकर बैठ गये मानो व
गर पड़ा।
घमंडीलाल कमरे से नकल आये और बोले—जाकर लेडी डा टर से तो पू छ। अ छ तरह दे ख न ले। दे खा सु ना, चल खड़ी हु ई। महर —बाबू जी, मने तो आंख दे खा है ! घमंडीलाल—क या ह है ? पता—हमार तकद र ह ऐसी है बेटा! जाओ रे सब के सब! तु म सभी के भा य म कु छ पाना न लखा था तो कहां से पाते। भाग जाओ। सकड़ पये पर पानी फर गया, सार तैयार
म ी म मल गयी।
घमंडीलाल—इस महा मा से पू छना चा हए। म आज डाक से जरा बचा क खबर लेता हू ं । पता—धू त है, धू त! घमंडीलाल—म उनक सार धू तता नकाल दूं गा। मारे डंड के खोपड़ी न तोड़ दूं तो क हएगा। चांडाल कह ं का! उसके कारण मेरे सकड़
पये पर
पानी फर गया। यह सेजगाड़ी, यह गाय, यह पलना, यह सोने के गहने कसके सर पटकूं । ऐसे ह उसने कतन ह को ठगा होगा। एक दफा बचा
ह मर मत हो जाती तो ठ क हो जाते।
पता जी—बेटा, उसका दोष नह ,ं अपने भा य का दोष है । 6
घमंडीलाल—उसने लए कतने ह
य कहा ऐसा नह ं होगा। औरत से इस पाखंड के
पये ऐंठे ह गे। वह सब उ ह उगलना पड़ेगा, नह ं तो पु लस
म रपट कर दूं गा। कानू न म पाखंड का भी तो दं ड है । म पहले ह च का था क हो न हो पाखंडी है ; ले कन मेर सलहज ने धोखा दया, नह ं तो म ऐसे पािजय के पंजे म कब आने वाला था। एक ह सु अर है । पताजी—बेटा स
करो। ई वर को जो कुछ मंजू र था, वह हु आ।
लड़का-लड़क दोन ह ई वर क दे न है , जहां तीन ह वहां एक और सह । पता और पु
म तो यह बात होती रह ं। पामर, मीर शकार आ द ने
अपने-अपने डंडे संभाले और अपनी राह चले। घर म मातम-सा छा गया, लेडी डॉ टर भी वदा कर द गयी, सौर म ज चा और दाई के सवा कोई न रहा। वृ ा माता तो इतनी हताश हु ई क उसी व त अटवास-खटवास लेकर पड़ रह ं। जब ब चे क बरह हो गयी तो घमंडीलाल
ी के पास गये और
सरोष भाव से बोले— फर लड़क हो गयी! न पमा— या क ं , मेरा
या बस?
घमंडीलाल—उस पापी धू त ने बड़ा चकमा दया। न पमा—अब
या कह, मेरे भा य ह
म न होगा, नह ं तो वहां
कतनी ह औरत बाबाजी को रात- दन घेरे रहती थीं। वह कसी से कु छ लेते तो कहती क धू त ह, कसम ले लो जो मने एक कौड़ी भी उ ह द हो। घमंडीलाल—उसने लया या न लया, यहां तो दवाला नकल गया। मालू म हो गया तकद र म पु या आज डू बा,
नह ं लखा है । कु ल का नाम डू बना ह है तो
या दस साल बाद डू बा। अब कह ं चला जाऊंगा, गृह थी म
कौन-सा सु ख रखा है । वह बहु त दे र तक खड़े-खड़े अपने भा य को रोते रहे; पर न पमा ने सर तक न उठाया। न पमा के
सर
फर वह
वपि त आ पड़ी,
फर वह ताने, वह
अपमान, वह अनादर, वह छ छालेदार, कसी को चंता न रहती क खातीपीती है या नह ं, अ छ है या बीमार, दुखी है या सु खी। घमंडीलाल य य प कह ं न गये, पर न पमा को यह धमक
ाय: न य ह
मलती रहती थी।
कई मह ने य ह गु जर गये तो न पमा ने फर भावज को लखा क तु मने और भी मु झे वपि त म डाल दया। इससे तो पहले ह भल थी। अब तो 7
काई बात भी नह ं पू छता क मरती है या जीती है । अगर यह दशा रह तो वामी जी चाहे सं यास ल या न ल, ले कन म संसार को अव य
याग
दूं गी।
भा
4 भी य प
पाकर प रि थ त समझ गयी। अबक
उसने
न पमा को बु लाया नह ,ं जानती थी क लोग वदा ह न
करगे, प त को लेकर
वयं आ पहु ं ची। उसका नाम सु केशी था। बड़ी
मलनसार, चतु र वनोदशील
ी थी। आते ह आते न पमा क गोद म
क या दे खी तो बोल —अरे यह सास—भा य है और
या?
या?
सु केशी—भा य कैसा? इसने महा मा जी क बात भु ला द ह गी। ऐसा तो हो ह नह ं सकता क वह मु ंह से जो कुछ कह द, वह न हो। तु मने मंगल का
य जी,
त रखा?
न पमा—बराबर, एक सु केशी—पांच
त भी न छोड़ा।
ा मण को मंगल के दन भोजन कराती रह ?
न पमा—यह तो उ ह ने नह ं कहा था। सु केशी—तु हारा सर, मु झे खू ब याद है, मेरे सामने उ ह ने बहु त जोर दे कर कहा था। तु मने सोचा होगा,
ा मण को भोजन कराने से
या होता
है । यह न समझा क कोई अनु ठान सफल नह ं होता जब तक
व धवत ्
उसका पालन न कया जाये। सास—इसने कभी इसक चचा ह नह ं क ;नह ;ं पांच
या दस
ा मण
को िजमा दे ती। तु हारे धम से कु छ कमी नह ं है । सु केशी—कु छ नह ,ं भू ल हो गयी और
या। रानी, बेटे का मु ंह य
दे खना नसीब नह ं होता। बड़े-बड़े जप-तप करने पड़ते ह, तु म मंगल के
त
ह से घबरा गयीं? सास—अभा गनी है और
या?
घमंडीलाल—ऐसी कौन-सी बड़ी बात थीं, जो याद न रह ? ं वह हम लोग को जलाना चाहती है ।
सास—वह तो कहू ं क महा मा क बात कैसे न फल हु ई। यहां सात
बरस ते ‘तु लसी माई’ को दया चढ़ाया, जब जा के ब चे का ज म हु आ। घमंडीलाल—इ ह ने समझा था दाल-भात का कौर है ! 8
सु केशी—खैर, अब जो हु आ सो हु आ कल मंगल है, फर अब क सात
त रखो और
ा मण को िजमाओ, दे ख, कैसे महा मा जी क बात नह ं पू र
होती। घमंडीलाल- यथ है , इनके कये कुछ न होगा। सु केशी—बाबू जी, आप व वान समझदार होकर इतना दल छोटा करते ह। अभी आपकक उ
या है ।
कतने पु
ल िजएगा? नाक दम न हो
जाये तो क हएगा। सास—बेट , दूध -पू त से भी कसी का मन भरा है । सु केशी—ई वर ने चाहा तो आप लोग का मन भर जायेगा। मेरा तो भर गया। घमंडीलाल—सु नती हो महारानी, अबक
कोई गोलमोल मत करना।
अपनी भाभी से सब योरा अ छ तरह पू छ लेना। सु केशी—आप
नि चंत रह, म याद करा दूं गी;
होगा, कैसे रहना होगा कैसे
या भोजन करना
नान करना होगा, यह सब लखा दूं गी और
अ मा जी, आज से अठारह मास बाद आपसे कोई भार इनाम लू ंगी। सु केशी एक स ताह यहां रह और न पमा को खू ब
सखा-पढ़ा कर
चल गयी।
न
5 पमा का एकबाल
फर चमका, घमंडीलाल अबक
इतने
आ वा सत से रानी हु ई, सास फर उसे पान क भां त फेरने
लगी, लोग उसका मु ंह जोहने लगे। दन गु जरने लगे, न पमा कभी कहती अ मां जी, आज मने दे खा क वृ
व न
ी ने आकर मु झे पु कारा और एक ना रयल दे कर बोल , ‘यह
तु ह दये जाती हू;ं कभी कहती,’अ मां जी, अबक न जाने
य मेरे दल
म बड़ी-बड़ी उमंग पैदा हो रह ह, जी चाहता है खू ब गाना सु न,ू ं नद म खू ब नान क ं , हरदम नशा-सा छाया रहता है । सास सु नकर मु कराती और कहती—बहू ये शु भ ल ण ह। न पमा चु पके-चु पके माजू र मंगाकर खाती और अपने असल ने
ताकते हु ए घमंडीलाल से पू छती-मेर आंख लाल ह
या?
से
घमंडीलाल खु श होकर कहते—मालू म होता है, नशा चढ़ा हु आ है । ये शु भ ल ण ह। 9
न पमा को सु गंध से कभी इतना
ेम न था, फू ल के गजर पर अब
वह जान दे ती थी। घमंडीलाल अब
न य सोते समय उसे महाभारत क
पढ़कर सु नाते, कभी गु कथा से
वीर कथाएं
गो वंद संह क त का वणन करते। अ भम यु क
न पमा को बड़ा
ेम था। पता अपने आने वाले पु
को वीर-
सं कार से प रपू रत कर दे ना चाहता था। एक दन न पमा ने प त से कहा—नाम
या रखोगे?
घमंडीलाल—यह तो तु मने खू ब सोचा। मु झे तो इसका
यान ह न
रहा। ऐसा नाम होना चा हए िजससे शौय और तेज टपके। सोचो कोई नाम। दोन हर च
ाणी नाम
क
या या करने लगे। जोरावरलाल से लेकर
तक सभी नाम गनाये गये, पर उस असामा य बालक के लए
कोई नाम न मला। अंत म प त ने कहा तेगबहादुर कैसा नाम है । न पमा—बस-बस, यह नाम मु झे पस द है ? घमंडी लाल—नाम ह तो सब कु छ है । दमड़ी, छकौड़ी, घु रहू, कतवा , िजसके नाम दे खे उसे भी ‘यथा नाम तथा गु ण’ ह पाया। हमारे ब चे का नाम होगा तेगबहादुर। 6 सव-काल आ पहु ं चा। न पमा को मालू म था क
या होने वाल
है ; ले कन बाहर मंगलाचरण का पू रा सामान था। अबक को लेशमा
भी संदेह न था। नाच, गाने का
कसी
बंध भी कया गया था। एक
शा मयाना खड़ा कया गया था और म गण उसम बैठे खु श-गि पयां कर रहे थे। हलवाई कड़ाई से पू रयां और मठाइयां नकाल रहा था। कई बोरे अनाज के रखे हु ए
थे क शु भ समाचार पाते ह
भ ुक को बांटे जाय। एक
ण
का भी वल ब न हो, इस लए बोर के मु ंह खोल दये गये थे। ले कन न पमा का दल
त ण बैठा जाता था। अब
या होगा?
तीन साल कसी तरह कौशल से कट गये और मजे म कट गये, ले कन अब वपि त सर पर मंडरा रह है । हाय! नरपराध होने पर भी यह दं ड! अगर भगवान ् क इ छा है
क मेरे गभ से कोई पु
न ज म ले तो मेरा
दोष! ले कन कौन सु नता है । म ह अभा गनी हू ं म ह कलमु ंह हू ं इसी लए न क परवश हू! ं
या
या य हू ं म ह
या होगा? अभी एक
ण म यह
सारा आनंदा सव शोक म डू ब जायेगा, मु झ पर बौछार पड़ने लगगी, भीतर 10
से बाहर तक मु झी को कोसगे, सास-ससु र का भय नह ,ं ले कन शायद फर मेरा मु ंह न दे ख, शायद नराश होकर घर-बार
वामी जी
याग द। चार
तरफ अमंगल ह अमंगल ह म अपने घर क , अपनी संतान क दुदशा दे खने के लए
य जी वत हू ं । कौशल बहु त हो चु का, अब उससे कोई आशा नह ं।
मेरे दल म कैसे-कैसे अरमान थे। अपनी
यार बि चय का लालन-पालन
करती, उ ह याहती, उनके ब च को दे खकर सु खी होती। पर आह! यह सब अरमान झाक म मले जाते ह। भगवान ्! तु ह अब इनके पता हो, तु ह ं इनके र क हो। म तो अब जाती हू ं । लेडी डॉ टर ने कहा—वेल! फर लड़क है । भीतर-बाहर कुहराम मच गया, प स पड़ गयी। घमंडीलाल ने कहा— जह नु म म जाये ऐसी िजंदगी, मौत भी नह ं आ जाती! उनके पता भी बोले—अभा गनी है , व
अभा गनी!
भ ुक ने कहा—रोओ अपनी तकद र को हम कोई दूसरा
वार दे खते
ह। अभी यह शोकादगार शांत न होने पाया था क डॉ टर ने कहा मां का हाल अ छा नह ं है । वह अब नह ं बच सकती। उसका दल बंद हो गया है ।
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